बर्बरीक | barbarik kon tha

नमस्कार भाइयो आइये हम जानते है महाभारत काल के एक ऐसे धनुर्धर के बारे में जिनके सामने शत्रु सेना भी घुटने टेक देती थी। आपने कई ऐसे महारथियों के बारे में पढ़ा और सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं महाभारत काल के एक ऐसे धनुर्धर के बारे में जो अकेला ही पूरे महाभारत के युद्ध को क्षण भर में समाप्त कर सकता था परंतु उस योद्धा ने यूद्ध में भाग ही नहीं लिया। आइए जानते हैं एक ऐसे ही योद्धा के बारे में जिसका नाम था बर्बरीक और आखिर क्या वजह थी जो इस योद्धा ने युद्ध में भाग नहीं लिया।

बर्बरीक कौन थे ?

बर्बरीक (जिनको वर्त्तमान में खाटूश्याम बाबा के नाम से जानते है ) घटोत्कच और अहिलावती के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य दो भाई अंजन पर्व और मेघ वर्ण थे। बर्बरीक अत्यधिक वीर पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे। उन्होंने मां कामाख्या की तपस्या कर असीमित शक्तियों को भी अर्जित कर लिया। वे इतने बलवान थे कि महाभारत के युद्ध को क्षण भर में ही समाप्त कर सकते थे। महाभारत के युद्ध को अंत तक देखने की उनकी कामना श्री कृष्ण के दिए वरदान से पूर्ण हुई। जिस वरदान के चलते इनका सर धड़ से अलग होने के बावजूद वह पूरा युद्ध अंत तक देख सके।

बर्बरीक और कृष्ण
बर्बरीक और कृष्ण

कैसे हुवा बर्बरीक का सर धड़ से अलग?

बर्बरीक ने अपने गुरुदेव को वचन दिया था की वो कभी भी यूद्ध लड़ेंगे तो केवल कमजोर पक्ष की और से लड़ेंगे महाभारत यूद्ध में जब बर्बरीक हिस्सा लेने अये
तब भगवन श्री कृष्ण बर्बरीक के पास पहुंचे और उन्होंने बर्बरीक की वीरता देख केर सोचा की यदि बर्बरीक योध में भाग लगे तो ये यूद्ध कभी ख़तम ही नही और अंत में केवल बर्बरीक ही बच पाए गे इस योध में श्री कृष्ण भी बर्बरीक के गुरु थे और उन्होंने बर्बरीक से गुरु दक्षिणा में बर्बरीक का सिर मांग लिया तब बर्बरीक ने तुरंत अपना सिर धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को दे दिया।

बर्बरीक के गुरु और शिक्षा।

बाल्यकाल से ही बर्बरीक अत्यधिक वीर और पराक्रमी थे। उनकी पहली गुरु उनकी दादी मां हिडिंबा थी। बाद में वह श्री कृष्ण की आज्ञा से। विजयसिद्धसेन नामक गुरु की खोज में निकल गए। उन्हें उनके गुरु ने यही सिखाया था कि हमेशा कमजोर पक्ष की तरफ से ही लड़ना चाहिए और वे इसके लिए वचनबद्ध थे।

बर्बरीक की सिद्धियां
बर्बरीक की सिद्धियां

उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा से मां कामाख्या की घोर तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त की और अजय अमर हो गए। मां कामाख्या ने उन्हें वरदान में तीन प्रलयंकारी बाण दिए जिसमें पहला बाण लक्ष्य को छेद(निशान बना देता) देता था दूसरा बाण उन्हें भेद देता था और तीसरा बाण उनके पास अतिरिक्त था। वह दो बाण में ही महाभारत के संपूर्ण युद्ध को खत्म कर सकते थे।

बर्बरीक पूर्व जन्म में कौन थे?

बर्बरीक पूर्व जन्म में एक यक्ष थे। जिन्होंने एक बार भगवान विष्णु का अपमान कर दिया। भगवान विष्णु का अपमान देख ब्रह्मदेव क्रोधित हो उठे और उन्हें। धरती लोक पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। और कहा कि वे पृथ्वी लोक में एक दैत्य जाति में जन्म लेंगे तथा सभी आतंकियों का वध करने से पहले भगवान विष्णु उनका वध करेंगे। इसी श्राप के अनुसार उस यक्ष ने घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के रूप में धरती लोक पर जन्म लिया।

बर्बरीक खाटू श्याम कैसे बने?

जब बर्बरीक महाभारत युद्ध में लड़ने के लिए हस्तिनापुर पहुंचे। तब श्रीकृष्ण समेत पांचो पांडव चिंतित हो उठे। क्योंकि बर्बरीक ने अपने गुरु को वचन दिया था कि वह सदैव कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेंगे। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने को कहा और एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर खड़े हो गए और कहा कि है बर्बरीक! तुम इस पीपल के वृक्ष के हर एक पत्ते को अपना शत्रु मान लो और अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करके दिखाओ।

श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने अपना पहला बाण निकाला और उससे सभी पत्तों पर निशान बना दिया। फिर उसने दूसरा बाण निकाला और सभी पत्तों को भेद दिया। इसी बीच श्रीकृष्ण ने एक पीपल का पत्ता अपने पांव के नीचे दबा रखा था। परंतु वह पत्ता भी बर्बरीक के बाण से बच ना पाया।

यह सब देख कर श्री कृष्ण चिंतित हो उठे। बर्बरीक ने श्री कृष्ण के चिंता का कारण पूछा तो श्रीकृष्ण ने कहा कि तुमने अपने गुरु को वचन दिया है कि तुम सदैव कमजोर पक्ष की और से युद्ध लड़ोगे। तो जब तुम पांडवों की ओर से युद्ध लड़ोगे और कौरवों को मार गिराओगे। तो कौरव कमजोर पड़ जाएंगे और फिर तुम कौरवों से जा मिलोगे और पांडवों को मार गिराओगे। तो पांडव कमजोर पड़ जाएंगे।

इस तरह तुम बारी-बारी से दोनों ही सेनाओं को पूर्ण रूप से समाप्त कर दोगे और अंत में तुम केवल अकेले बचोगे। यह सुनकर बर्बरीक चिंतित हो उठा और इस समस्या का समाधान करने के लिए श्री कृष्ण से कहा। श्री कृष्ण जो कि बर्बरीक के गुरु भी थे। उन्होंने बर्बरीक से गुरु दक्षिणा के रूप में उनका सर मांग लिया। जिससे कि वह युद्ध में भाग ना ले सके।

बर्बरीक
बर्बरीक का सर

श्री कृष्ण के गुरु दक्षिणा में बर्बरीक का सर मांगने के पश्चात बर्बरीक ने देर ना करते हुए अपना सर काट कर श्री कृष्ण के चरणों में रख दिया। तभी से बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से भी जाना जाने लगा।

खाटूश्याम कलयुग में कैसे बने हारे के सहारे?

कलयुग में खाटूश्याम, जिन्हें बर्बरीक या श्याम बाबा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं और लोककथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि खाटूश्याम कुरूक्षेत्र युद्ध के गवाह थे, जब श्री कृष्ण ने उनकी भक्ति की परीक्षा ली थी। तब भगवान कृष्ण को बलिदान के रूप में अपना सिर अर्पित किया था, श्री कृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसनं होकर अपने दिव्य दर्सन दिए तब बर्बरीक ने महाभारत यूद्ध को पूरा देखने की बात कही तब श्री कृष्ण ने उनका शिर खाटू नाम की पहाड़ी पर विराजित कर दिया जहा से वो पूरा यूद्ध देख सके और उनको ये वरदान दिया की कालययुग में वो उनके शयाम अवतार के रूप में पूजे जायेगे और बिगड़े काम बनायेगे तब से बर्बरीक को खाटूश्याम के नाम से जाना जाता है

खाटूश्याम मंदिर कहा पर है: खाटूश्याम मंदिर किसने बनवाया था?

खाटूश्यामजी (बर्बरीक) को समर्पित खाटूश्याम मंदिर, भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटूश्याम गाँव में स्थित है। खाटूश्याम मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में रूपचंद कोठारी नामक एक धर्मनिष्ठ व्यापारी ने करवाया था। खाटूश्यामजी के दिव्य दर्शन के बाद रूपचंद कोठारी को इस मंदिर के निर्माण निर्माण करवया और तबसे यह मंदिर उन भक्तों के लिए एक अत्यधिक पूजनीय और लोकप्रिय तीर्थ स्थल है जो खाटूश्यामजी का आशीर्वाद लेने आते हैं, खासकर गांव में लगने वाले वार्षिक फाल्गुन मेले के दौरान आते है।

खाटूश्यामजी (बर्बरीक) मेला, जिसे फाल्गुन मेला के नाम से भी जाना जाता है, एक वार्षिक धार्मिक मेला है जो आम तौर पर भारत के राजस्थान के सीकर जिले के खाटूश्याम गाँव में लगता है। यह मेला हिंदू चंद्र कैलेंडर के फाल्गुन महीने के दौरान मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर में फरवरी या मार्च के महीने से लगता है। इस भव्य धार्मिक आयोजन में भाग लेने और मेले के दौरान खाटूश्यामजी का आशीर्वाद लेने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु खाटूश्याम मंदिर में आते हैं। यह मेला केवल 5 दिनों के लिए हे आयोजित किया जाता है। जिसको देखने के लिए देश विदेश से लोगो की लाखो की संख्या में भीड़ अति है।

Q&A

Q) बर्बरीक कौन था?
 –   बर्बरीक घटोत्कच और अहिलावती के सबसे बड़े पुत्र थे।

Q)  बर्बरीक के कितने भाई थे?
 –    बर्बरीक के दो भाई अंजन पर्व और मेघ वर्ण थे।

Q) बर्बरीक के गुरु कौन थे?
 –   बर्बरीक को सर्वप्रथम उनकी दादी मां हिडिंबा ने शिक्षा प्रदान की बाद में उन्होंने विजयसिद्धसेन नामक गुरु से शिक्षा प्राप्त की। कुछ कथाओं के अनुसार  श्रीकृष्ण को भी बर्बरीक का गुरु माना जाता है।

Q) बर्बरीक ने किसकी तपस्या से तीन चमत्कारी बाण हासिल किए?
 –   इस प्रश्न का सटीक उत्तर देना थोड़ा कठिन है। अलग-अलग मान्यताओं में अलग-अलग देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। एक मान्यता के अनुसार मां आदिशक्ति ने बर्बरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें तीन चमत्कारी बाण दिए। एक और मान्यता के अनुसार बर्बरीक ने मां कामाख्या की पूजा की जिससे प्रसन्न होकर मां कामाख्या ने उन्हें 3 चमत्कारी बाण दिए। तथा कहीं-कहीं शिव का भी वर्णन मिलता है कि शिव शंकर ने बर्बरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें तीन बाण दिए।

Q) बर्बरीक के धनुष का नाम क्या था ?
 –  बर्बरीक के पास एक दिव्य धनुष था जिसे “अक्षय धनुष” के नाम से जाना जाता था।

Q) बर्बरीक पूर्व जन्म में कौन थे?
 – बर्बरीक पूर्व जन्म में एक यक्ष थे।

Q) बर्बरीक किसका पुत्र था?
 – बर्बरीक, जिन्हें खाटूश्यामजी या श्याम बाबा के नाम से भी जाना जाता है, घटोत्कच के पुत्र थे।

Q) बर्बरीक पूर्व जन्म में कौन था?
 – बर्बरीक के पिछले जन्म में भीमसेन नाम के एक वीर योद्धा माने जाते थे।

Q) बर्बरीक के गुरु कौन थे?
 – बर्बरीक के गुरु या शिक्षक भगवान कृष्ण माने जाते हैं।

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