धर्मराज युधिष्ठिर

हिंदू धर्म महाकाव्य महाभारत के अनुसार पांडु के सबसे जेष्ठ पुत्र युधिष्ठिर थे। इनका जन्म माता कुंती को एक वरदान के फलस्वरूप धर्म के देवता यमराज के द्वारा हुआ इसीलिए इन्हें धर्मराज युधिष्ठिर के नाम से भी जाने-जाते है।

माना जाता है कि पांडव पत्नी कुंती को ऋषि दुर्वासा से यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी देवता का आवाहन संतान प्राप्ति के लिए कर सकती है तो उन्होंने पहले यमराज का आवाहन किया जिसके फलस्वरूप युधिष्ठिर का जन्म हुआ। धर्म के देवता की संतान होने के कारण यह बचपन से ही धर्म के रास्ते पर चलने लगे उन्होंने दुर्योधन और उनके सहपाठियों के साथ हुए कुरुक्षेत्र के युद्ध में धर्म की जीत के लिए लड़ाई लड़ी थी।

युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहा जाता है और वह दुर्योधन के साथ द्वंद्व में नहीं थे, बल्कि उनकी भाईचारे और परिवार की संरक्षण चाहते थे। उन्होंने धर्म और सत्य का पालन करने के लिए हमेशा सत्य का मार्ग अपनाया था। और यही धर्म का रास्ता इनकी बहुत बड़ी शक्ति बनी।

युधिष्ठिर की पत्नियां व पुत्र ?

युधिष्ठिर की पत्नियां के नाम इस प्रकार हैं:

1. द्रौपदी
2. भद्रा
3. विजया
4. यूपिका
5. देविका

युधिष्ठिर की पत्नियों से निम्नलिखित पाँच पुत्र हुए थे:

1. द्रौपदी से प्रतिबिन्ब
2. भद्रा से सुतेश्ना
3. विजया से शतनीक
4. यूपिका से श्रुतकर्मा
5. देविका से जयत्सेन

‘यक्ष’ ने किए थे युधिष्ठिर से ये प्रश्न ?

यक्ष ने युधिष्ठिर से कई प्रश्न पूछे थे। जब युधिष्ठिर उनके स्थान पर अपने भाईयों को जीवित करने के लिए नरक की यात्रा करने के लिए तैयार हो रहे थे।
यक्ष ने उनसे पहले प्रश्न पूछा कि धर्म क्या है? इसके बाद वे उनसे कई और प्रश्न पूछते हैं, जैसे कि जीवन में सबसे बड़ा अनुभव kya है, कौन सबसे बलवान है, कौन सबसे विपत्ति से बचने में सक्षम है और कौन सबसे शीघ्र भाग्य को प्राप्त करता है।

जीवन में सबसे बड़ा अनुभव kyaहै
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि जीवन में सबसे बड़ा अनुभव मृत्यु का अनुभव होता है। मृत्यु का अनुभव हमें जीवन की सच्चाई से रूबरू करवाता है और हमें उसकी महत्ता को समझने की शक्ति देता है। इसके अलावा, युधिष्ठिर ने कहा कि जीवन में बड़े और गहरे संघर्ष का अनुभव होना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है जो हमें संजीवनी शक्ति प्रदान करता है।

कौन सबसे बलवान है
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि सबसे बलवान वही है जो अपने क्रोध को जीत सकता है। असली बल उस व्यक्ति में होता है जो अपने वश में अपने क्रोध को रख सकता है और जो उसे नियंत्रित कर सकता है। युधिष्ठिर ने कहा कि जो व्यक्ति इस तरह का बल रखता है, वह सम्पूर्ण विश्व का सबसे बलवान होता है।

कौन सबसे विपत्ति से बचने में सक्षम है
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि सचेत रहना और सदैव नैतिक तथा धार्मिक मूल्यों पर अडिग रहना। इसके अलावा, बुद्धिमानी, सद्भावना और उचित निर्णय लेने की क्षमता भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। इन सब के साथ साथ, कुछ दैवीय शक्तियों पर भी निर्भर करता है जैसे कि भगवान की कृपा और भाग्य।

कौन सबसे शीघ्र भाग्य को प्राप्त करता है।
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि, व्यक्ति अपने कर्मों को बदलकर, सकारात्मक और उत्तम विचारों को अपनाकर अपने भाग्य को सुधार सकता है। इसलिए, शीघ्र भाग्य की प्राप्ति के लिए सदाचार, निष्काम कर्म, सकारात्मक विचार और समस्याओं का सही समाधान ढूंढने की क्षमता विशेष महत्वपूर्ण होती है।

युधिष्ठिर ने उन सभी प्रश्नों का उत्तर दिया था और उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता और धर्म समझ का परिचय दिया था। इस प्रकार उन्होंने अपने भाईयों को जीवित करने के लिए यक्ष की प्रतिष्ठा जीती और यक्ष उन्हें उनकी प्रतिष्ठा वापस दे दि।

स्वर्ग की यात्रा ?

महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों ने 36 वर्षों तक हस्तिनापुर पर राज किया पांडवों के राज के दौरान श्री कृष्ण और बलराम ने अपना देह त्याग दिया यह देखकर पांडवों एवं द्रोपदी ने अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाने का फैसला किया तत्पश्चात सभी स्वर्ग की यात्रा के लिए निकल पड़े उनके साथ एक कुत्ता भी उस राह पर उनके पीछे पीछे चल दिया।

माना जाता है कि स्वर्ग का रास्ता वेणु पर्वत की चोटी पर खुलता है यात्रा बहुत लंबी थी कुछ दिनों बाद द्रोपति आगे ना चल पाए और उन्होंने रास्ते में ही देह त्याग दिया फिर नकुल सहदेव व अर्जुन ने भी मार्ग में अपना देह त्याग दिया और अंतिम पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते भीम ने भी अपना देह त्याग दिया आखिरकार युधिष्ठिर एवं उनके पीछे आ रहे उस कुत्ते ने स्वर्ग की यात्रा को पूर्ण की किया।

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